जाने कहाँ गए वो..


बड़े मुद्दत के बाद कुछ लिखा है
तुम्हे इल्म नहीं ये हुनर किनसे सिखा है
जान भी गए अगर तुम तो समझ लो
आसमान से बड़ा उनका रुतबा है
फिर एक दिन लगा जाए उनसे मिलके आये
मगर लगा कि घर पे जैसे कोई ताला है
मायूस हो पूछा उनके पड़ोसी से
तो बोला भैया हमे ना पता है
अपनी बग्गी पे बैठ चला ढूढने उन्हें
क्या पता वो शहर के किस ओर है
बाज़ार या मंदिर, मेले या जंगल
जाने कहाँ वो छुप के बैठा है
हम मिलें नहीं जाने कितने साल
माफ़ करदो बस यही एक ख़ता है
आ जाओ दुबारा उन्ही गलियारों में
वापस उन पलों को जीने में मज़ा है
मेरा झुकाव, मेहनत और मेरी लगन
फिर से सुर्खियो में आना मेरी अदा है **

-राजेश

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