आज़ादी- नानी की ज़ुबानी



आज़ादी...नानी की ज़ुबानी

सीखी हमने अधीनता नहीं
ग़ुलामी से स्वाधीनता भली
गर्व से आज़ादीअपनी
यह कहानी सुनाती है नानी

तीस दशक चली थी त्रासदी
कहीं कोड़े तो कही गोली
सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश में 
कपड़े तक नहीं थे जिनकी झोली
उनका ग़ुस्सा जायज़ था,
ज़ुबान बंद होके रह जाती उनकी
क्यूँकिअंग्रेज़ों का बलवान राज था
हिम्मत करअवाम ने कुछ करने की ठानी
ऐसा ही कुछ बताती है नानी

गर्म ख़ून वालों की खुली थी छतरी
जब युवाओं ने मचाया शोर
एक एक करअंग्रेज़ों के शासन में
जगह जगह किया तोड़फोड़
फिर खुले क़ानूनी तंत्र मंत्र,
नेताओं ने उठाया विवाद
कहते ऐसे नहीं मिलतीआज़ादी
उनकोअहिंसा से बात थी मनवानी
दृढ़ता से कहती है नानी

आंदोलन से हुआ रुबरू बार-बार
दुश्मनों ने कसा शिकंजा दुबारा
फाँसियों के रंग से हुआ देश तर-बतर
मगरअन्याय किसे था गवारा?
समझौतों का खुला दरबार
विफल किया हमने उनका हर वार
जब बँटवारे पर आयी बात
तबआज़ादी की ख़ुशबू आयी सुहानी
जिसका एहसास अब तक करती मेरी नानी

गर्व सेआज़ादीअपनी
कह कर हर बार रो पड़ती है नानी 

-राजेश 'निर्विघ्न'

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