उन्मादी मैं - हिंदी कविता
उन्मादी मैं मिट्टी के कण कण से आग़ाज़ है मेरा मेरे ललाट की ज्योत से रोशन हर सवेरा, चित्त है उद्भट सा, दिशाएँ हैं अस्थिर मैं तुम जैसा नहीं, थोड़ा सा अधीर लक्ष्य को नापता जीभ से बेस्वादी मैं जीवन रस को छेदता एक उन्मादी मैं आँखें मेरी बाज़ सी दुश्मन को भेदती प्रचण्ड बाज़ुओं से हिम्मत है सँवरती सरहदी आम्लों से बना कृत्रिम एक पुजारी मैं हर पल की मुस्तैदी एक उन्मादी मैं चुभते काँटों पर रेत बनकर फिसल जाऊँ उगते फ़सलों का खेत बनकर बहल जाऊँ क्रूर गर्मी को झेलती नागफनी सा कठोर मैं आँधियों सा फ़ौलादी एक उन्मादी मैं खोज की लालसा लिए चींटियों सा तत्पर पहाड़ों सा भारी ज़िम्मेदारी लिए छत पर, अपने घोंसले के ख़्वाबों का सन्यासी मैं जज़्बात से कर शादी एक उन्मादी मैं